राग द्वेष हैं सबके, सब अपने बनके, मेरे पास भटके, सारे भ्रम से लगते, मुझे आज भी वक्त मेरा, दिखता सख्त सा ही, चाहा सबको, कोई मिलता क्यों नहीं ? झूठे लोग, उनकी झूठी बातें, सब कुछ सिखाते, सारे रिश्ते नाते, मतलब की जात, मतलब की खाते हैं पहले मीठी […] Hindi Poems राग द्वेष – मतलब की जात