ज़िन्दगी गुजर रही है, जीने की तैयारी में,
पूरा विश्व झुलस रहा, एक देश की मक्कारी में |
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घर बैठे सब ढूंढ रहे, खिलोने मन बहलाने के,
जिनसे न सम्भले तशरीफ़े, लायक वो डंडे खाने के |
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अपमान प्रकृति का कर डाला, जीवों का संहार किया,
कुछ गैर-मानविक तत्वों ने, नासमझी का सत्कार किया |
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अभी भी सम्भलों देर से ही, कुछ दिन न मिलो, हम गैर सही,
तुम अपने, और मैं अपने घर, और रखना किसी से बैर नहीं |
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थोड़ा बस तुम धैर्य रखो, हम ये जंग अवश्य जीतेंगे,
चायनीज वायरस और चाइनीज माल, इस देश में अब ना बिकेंगे |
*Idea credit – Zistboon