ना शोर था कोई उलझनों का,
बस खामोशियाँ हवा में,
शोर करती जा रही थी |
सर की मेरी कुछ नसें,
तब दिल के मेरे तारों से,
कुछ बातें करने आ रही थी |
***
सोच से मैं मुग्ध,
और जुबान से मैं अधपक्का,
मैं फिर भी बक-बका के था मैं बात को बिगाड़ता |
राब्ता…
ना था मेरा किसी से, और ना था किसी से वास्ता |
लापता…
हो गया वो शख़्स जिस से जुडी थी आस्था |
कौन ख़ास था ? और कौन पास होके
दे रहा दूर का अहसास था |
***
भाई मेरे पास आके बैठ जरा साथ में तू,
तुझको सुनानी कुछ बातें ये अनोखी है |
खरोंचे हैं, हां मेरे दिल पे खरोंचे हैं,
जो दिल ने बिताई वो जो रातें अकेली,
अब सर चढ़ आई हैं वो बनके पहेली|
मेरा हाल बेहाल सा,
रुकने का ख्याल था,
न चलने की हिम्मत,
टुटा हर हाल था.
मै फिर भी बवाल था, बंदा कमाल था,
सर को खपा के मैं जो भी कमा लेता |
लोगो के दिलों उठता सवाल था,
आता फिर जो भी मैं उसको भगा देता ||
***
अब तू ही बता मैं कैसे आऊँ,
वापसी का पता मैं कैसे पाऊं |
मुझको न भिड़ना अब किसी से भी,
भाई बचाले can’t face it now !