वो शहर ठिकाना कैसे बने,
जो दे न सके रोने का कोना |
जो माँ की तरह परवाह न करे,
गर पड़ जाये भूखा ही सोना ||
*
जहाँ मेरी चीख कैद दीवारों में,
और आँसू आँख से बह ना सके |
बेकार शहर की वो चकाचौंध,
जहाँ हम दर्द किसी को कह न सके ||
वो शहर ठिकाना कैसे बने, जो दे न सके रोने का कोना | जो माँ की तरह परवाह न करे, गर पड़ जाये भूखा ही सोना || Click To Tweet
माँ कहती है, क्यों तू आता नहीं?
क्यों calls मेरे तू उठाता नहीं?
इतना ही बता दे क्यों तू अपनी,
शक्ल भी हमको दिखाता नहीं?
*
बेटे, हाल तेरा कैसा है मुझ बिन?
दिन मौज में, या बस कट रहे गिन-गिन |
कहे तो वहां पे मैं आ जाऊं,
दिल सहमा सा, धुंधले हैं पलछिन ||
*
डर लगता है, मन लगता नहीं,
माँ, तुझ सा सुकून कहीं और नहीं |
ये शहर भरा है चिंगारों से,
यहाँ सब रोशन है पर पोषण नहीं ||
*
माँ तू जहाँ रहे वो घर लगता है,
इस शहर में मेरा दम घुटता है |
मन करता है पास बुला लू तुझे,
बिन तेरे सब कुछ कम लगता है ||