वो शहर ठिकाना कैसे बने, जो दे न सके रोने का कोना | जो माँ की तरह परवाह न करे, गर पड़ जाये भूखा ही सोना || * जहाँ मेरी चीख कैद दीवारों में, और आँसू आँख से बह ना सके | बेकार शहर की वो चकाचौंध, जहाँ हम दर्द […]
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वो शहर ठिकाना कैसे बने, जो दे न सके रोने का कोना | जो माँ की तरह परवाह न करे, गर पड़ जाये भूखा ही सोना || * जहाँ मेरी चीख कैद दीवारों में, और आँसू आँख से बह ना सके | बेकार शहर की वो चकाचौंध, जहाँ हम दर्द […]