तुम न सर्वश्रेस्ट, न सर्वोतम, तुम राग द्वेष के पुरुषोत्तम | तुम अंधकार के हो सूचक, तुम दगाबाजी के हो पूरक || * क्या जमीर का भीतर कक्ष नहीं? क्या एक भी अंग निष्पक्ष नहीं? जो पीड़ पराई समझे, तुम में एक भी ऐसा शख्श नहीं || * शीर्ष बुलन्दी […]
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