इतने भी बुरे हालात नहीं
तुम दिन ही मानो रात नहीं,
ये सबके बस की बात नहीं |
क्यों रोता है तू किस्मत पे,
इतने भी बुरे हालात नहीं ||
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यह समय का बस एक दौर,
जहाँ पे टिकटी एक भी रात नहीं |
वो अंत अँधेरे का होता है,
सवेरे की सौगात नहीं ||
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मूर्च्छित है तू जमीन पे आज,
कल उड़ान ज़माना देखेगा |
मातम फिर किस बात का है,
क्या सलामत पैर और हाथ नहीं ?
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कुछ था ऐसा जिसे खो दिया है ? या कुछ ऐसा जो तुम पा न सके ?
था कोई जिसको चाहा था, पर दिल की बात बता न सके ?
गर हारे हो तुम जीवन से, तो नए तेरे हालात नहीं,
हर कोई यहाँ पे पीड़ित है, क्या इतना भी तुम्हें ज्ञात नहीं ?
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थोड़ा खुद को खुश रख, थोड़ा रुक के लम्बी सांस तू ले,
नाराज है, माना नाख़ुश भी, पर डट के जीत की आस तू ले|
बस मन का ही तो भेद है प्यारे और कहीं पक्षपात नहीं,
तुम जीतोगे वो दिन भी, सोचा जिनकी होगी रात नहीं ||
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