तू जहाँ थी, वहां पे, बेचैनियां बड़ी थी,
हाथों में तेरा हाथ, लगा जैसे हथकड़ी थी |
तू थी शातिर और मैं पागल, मुझको कैसी हड़बड़ी थी?
फिर गई तू तोड़ के वो सारी आस जो जुड़ी थी ||…slow
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on beat…
मैं बेहाल सा शख्श, वक्त बेवक्त
करता सब कुछ मैं फिर भी हुँ पस्त
जब भी सोचा कि कर लू सब ठीक
झट से सर् करे गन्दी हरकत
कोई साथ था नहीं, था अकेला ही
साया साथ में, पल दो पल का
चल वो भी न मिला, तू तो था ही
मेरा दाना-पानी, मेरी दवाई
क्यों गिरते आंसू लिए आँख में नमी, मैं खड़ा था जैसे तबाही
तू हँसते-हँसते मेरे आंसुओं पे जब दे गया था झूठी गवाही
क्यों लाज न आये, कोई शर्म न खाये, तू बस बेठे-बेठे बातें बनाये
मेरी पनाहें फैलाती बाहें, मैं काट दूंगा गर तू समाये
अरे झूठी तू और तेरी झूठी कसमें
मीठी वो बातें, कहे कर लूँ वश में
मेरे पास न आना मैं लगा हूं धंसने
कर याद तू बोली थी, हूं वीभत्स मैं
सब अब से बंद, न होना दंग
मैं पार करके पैनी सुरंग
उस पर हूँ मैं अब सब से तंग
दूर रहना अब न तू दिखना संग
slow…
मेरे भीतर की कश्मकश से तेरी ख्वाइशें थी जिन्दा,
तभी तो कर्कश भावों से की मेरे अहसानों की निंदा |
लाजमी है, बेशरम तू, पर थी बेबस तू कभी ना,
तूने जकडा जाल में मुझे, मैं था आज़ाद परिंदा ||