
कहना था वो कह गई , ना सहना था वो सह गई,
एक बांध आँसुओं का था, वो टूट कर के बह गई |
देह भरा खरोंचो से, न रक्त-धारा जम सकी,
क्रूर इस जहां को फिर अलविदा वो कह गई ||
*
थी बर्बादी की एक आंधी जब हवा का दाब न्यून था,
हुई शोलों की तब बारिश, जब न कोई मानसून था |
चील कौवों की तरह वो नोच के हुए फरार,
उसके दर्द का गवाह, वो बहता हुआ खून था ||
*
कैसे कह गया तू उसके कपडे बहुत छोटे थे,
और कैसे तंज कसा कि शायद चाल-चलन ही खोटे थे |
क्या औरतें दबाने में तू इस कदर आसक्त था ?
दिखे नहीं विचार तेरे नीच और कितने छोटे थे ||
*
उसकी चीख ना सुनी, तू चीखा सीना तान के,
खोखले गुब्बारे, ये सिद्धांत स्वाभिमान के |
बेटों की तालीम और बेटी का तू कमान बन,
बन खुदा तू बाद में, पर पहले तू इंसान बन ||
Please share this poem.
God Bless all the girls with the strength to fight back.
2 thoughts on “अलविदा वो कह गई – Stop Rape Terrorism”
I really appreciate your words????
Thank You so much for your appreciation… it really gives us a boost to write more.