जगी मशालें दिल में संभाले,
जलने का मुझको ध्यान नहीं,
हूँ आज का युवा, अस्थ-व्यस्त,
कल का भी मुझको ज्ञान नहीं II
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हड़बड़ी कर होड़ में पागल,
गड़बड़ी कर फसा मैं दलदल,
शोर हर पल दिल में हलचल,
रोया देख मैं उथल-पुथल II
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मुसीबतों से प्यार करके,
खुद को रोज अश्रू में भर के,
खेद खुद से ना साथ खुद के,
मैं खुद के विरुद्ध चला जाल बुनके II
*
दूरदर्शी मैं बन न पाया,
पलभर का लोभी बन भोग में आया,
फिर स्वप्न छोड़ दिल दर्द में आया,
था नसीबो दुःख वो क्षण भर की माया II
जगी मशालें, युवा के हवाले, मरहम का बोझ कोई ना संभाले
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