मेरी मेहनत में क्या कमी रही,
क्यों आँखों में मेरे नमी रही.
पिंजरें की कड़ी ना तोड़ सकी,
साँसे ऐसी मेरी जमी रही.
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सोचा नहीं हकदारों को तुम खून के आंसू रूलाओगे,
योग्य अयोग्य का भेद मिटा, धांधली की सीढ़ी चढ़ जाओगे |
और सबकी टांग खींचने वालों तुम खुद कब ऊँचा उठ पाओगे,
चंद पैसों के खातिर कब तक, बच्चों को यूँ मरवाओगे?
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कुछ सफल हुए फिर हार गये,
कुछ हद को तोड़ हद पार गये |
तुम एक फैसला बदल के सबको,
जीते जी ही मार गए ||
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तानों की फिर बौछार हुई,
और फिर से इज्जत तार हुई |
गैरों से फिर भी संभल जाती,
मैं मेरे घर में भी शिकार हुई ||
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“क्या हुआ तेरे उन सपनों का हम आस लगाए बैठे थे?”
मुँह फेर के वो फिर हँस देते, असल वो घात लगाए बैठे थे |
अब किसी को अपनी शक्ल दिखाना भी न गवारा लगता है,
जी तोड़ की मेहनत हार बनी, कब से दिल को दबाये बेठे थे ||
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थोड़ी शर्म करो रिश्तेदारों, कब तक मुझको मुर्झाओगे,
मुझसे दूर जाते हो, एक दिन साथ में दिखना चाहोगे |
और मुझे रोता देख के हँसने वालों, ये हँसी तुम्हारी अंतिम है,
जीत का तमाचा जड़ दूंगी, मेरी हार पे हंस न पाओगे ||
One thought on “मेहनत में क्या कमी रही ?”
True lines…. ?