हम इंसान हैं छोटी सोच के || Poetry and Poems

हम इंसान हैं छोटी सोच के,

नहीं मानते हम में खोट है|

नालायक बेटे के हिस्से की,

बेटी को देते चोट हैं ||

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हां थोड़े से खुदगर्ज़ भी हैं,

हम बेबस और लाचार भी हैं |

बेटा ना बुढ़ापे में छोड़े,

दिखावे का शिष्टाचार भी है ||

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बेटी के संग सख्त बहुत, 

बेटों पे गिड़गिड़ाते हैं |

ले बचपन से जवानी तक, 

हम ही सर पे चढ़ाते हैं ||

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ना जांचो यूँ ना परखो हमें,

हम पक्षपात के जाए हैं |

बेटा होता है घर का चिराग,

बेटी के पैर पराये हैं ||

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बेटा तू आके खाना खा,

बेटी तू आ जरा हाथ बंटा |

भूख लगी है? बाद में खाना,

आ पहले भाई को खिला ||

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क्यों इतना करते भेदभाव,

क्यों बेटी से नहीं तुम्हें लगाव |

माँ बाप हो तुम जल्लाद नहीं

जो दे रहे हो इतना दबाव ||

Palmword

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2 thoughts on “हम इंसान हैं छोटी सोच के || Poetry and Poems”

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