Stop Gender Discrimination
हम इंसान हैं छोटी सोच के,
नहीं मानते हम में खोट है|
नालायक बेटे के हिस्से की,
बेटी को देते चोट हैं ||
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हां थोड़े से खुदगर्ज़ भी हैं,
हम बेबस और लाचार भी हैं |
बेटा ना बुढ़ापे में छोड़े,
दिखावे का शिष्टाचार भी है ||
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बेटी के संग सख्त बहुत,
बेटों पे गिड़गिड़ाते हैं |
ले बचपन से जवानी तक,
हम ही सर पे चढ़ाते हैं ||
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ना जांचो यूँ ना परखो हमें,
हम पक्षपात के जाए हैं |
बेटा होता है घर का चिराग,
बेटी के पैर पराये हैं ||
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बेटा तू आके खाना खा,
बेटी तू आ जरा हाथ बंटा |
भूख लगी है? बाद में खाना,
आ पहले भाई को खिला ||
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क्यों इतना करते भेदभाव,
क्यों बेटी से नहीं तुम्हें लगाव |
माँ बाप हो तुम जल्लाद नहीं
जो दे रहे हो इतना दबाव ||
Palmword
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2 thoughts on “हम इंसान हैं छोटी सोच के || Poetry and Poems”
Nice thought
Thank you…Keep reading our posts.