Marathon Motivational Poem for Runers - क्यों रुक मैं गया ?

क्यों रुक मैं गया ?

Marathon Motivational Poem for Runers - क्यों रुक मैं गया ?

क्यों रुक मैं गया ?


जब साँस हुई अंदर भारी,  फिर याद आई जिम्मेदारी,

सपनों की सवारी करनी? पहले खुद की करो पहरेदारी |

सीधा तन के निकला तो फिर, हांफ के क्यों झुक मैं गया?

और, नहीं मिली मंजिल अब तक, तो हार के क्यों रुक मैं गया ||

Marathon Motivational Poem for Runers - क्यों रुक मैं गया ?

वो कैद था सदियों से जिसको मैंने था आज़ाद किया,

कि जंग लगे पुरजों ने मानो तेल से था स्नान किया |

मिट्टी भी मन की धुल गयी, और फिर साफ़ नज़र आया सब कुछ,

कि कैसे घर पे बेठे अब तक खुद तो था बर्बाद किया ||

Marathon Motivational Poem for Runers - क्यों रुक मैं गया ?

सर से पसीना छूटने को, अर्सों से बेताब था,

वो मैं ही था जो खुद से अब तक,  बेबस था लाचार था |

जब चलने लगा मैं ट्रैक पे, खुशियों का बादल फट गया,

इससे पहले, मानो मैं कोई ढला हुआ आफ़ताब था ||

Marathon Motivational Poem for Runers - क्यों रुक मैं गया ?

सपनों की लगानी दौड़ है, अब सबसे मेरी होड़ है,

भिड़ना है ? आ जाओ, देखु तेरी कितनी चोड़ है |

100 – 200 मीटर की नहीं, मेरी सोच ये marathon है,

फिर आग बनके पैर दौड़े, जब भी बजता हॉर्न है ||

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 thoughts on “क्यों रुक मैं गया ?”

error

Enjoy this blog? Please spread the word :)