क्यों रुक मैं गया ?
जब साँस हुई अंदर भारी, फिर याद आई जिम्मेदारी,
सपनों की सवारी करनी? पहले खुद की करो पहरेदारी |
सीधा तन के निकला तो फिर, हांफ के क्यों झुक मैं गया?
और, नहीं मिली मंजिल अब तक, तो हार के क्यों रुक मैं गया ||
वो कैद था सदियों से जिसको मैंने था आज़ाद किया,
कि जंग लगे पुरजों ने मानो तेल से था स्नान किया |
मिट्टी भी मन की धुल गयी, और फिर साफ़ नज़र आया सब कुछ,
कि कैसे घर पे बेठे अब तक खुद तो था बर्बाद किया ||
सर से पसीना छूटने को, अर्सों से बेताब था,
वो मैं ही था जो खुद से अब तक, बेबस था लाचार था |
जब चलने लगा मैं ट्रैक पे, खुशियों का बादल फट गया,
इससे पहले, मानो मैं कोई ढला हुआ आफ़ताब था ||
सपनों की लगानी दौड़ है, अब सबसे मेरी होड़ है,
भिड़ना है ? आ जाओ, देखु तेरी कितनी चोड़ है |
100 – 200 मीटर की नहीं, मेरी सोच ये marathon है,
फिर आग बनके पैर दौड़े, जब भी बजता हॉर्न है ||
2 thoughts on “क्यों रुक मैं गया ?”
Good one. Loved the ‘Marathon’ reference.
Thank You!!! Actually I’m a member of NKR (North Kolkata Runners). So, it’s for NKR and all the runners around.