क्यों रुक मैं गया ? जब साँस हुई अंदर भारी, फिर याद आई जिम्मेदारी, सपनों की सवारी करनी? पहले खुद की करो पहरेदारी | सीधा तन के निकला तो फिर, हांफ के क्यों झुक मैं गया? और, नहीं मिली मंजिल अब तक, तो हार के क्यों रुक मैं गया || […]
बदन से रिसता खून जिसके आगे हार जाता सीने में भरा जुनून, आता जब भी छीन लेता, मेरा सारा सुकून | रोके से ना रुके, लगा लो रुई या कपडा ऊन, फिर तोड़ देता है मुझको, मेरे बदन से रिसता खून || * महीने के वो चार दिन, क्यों मैं […]
दिया और रोशनी के साथ, दीवाली का आया त्यौहार | माता सीता और लक्ष्मण के साथ, जब अयोध्या लौटे राम, कर वनवास को पार || *** उनके वापसी की सौगात, दिवाली में होती दिए के साथ | घर घर जलते दिए, है प्रतीक उसी रात के, जब खिले हुए थे […]