बज गया फिर बिगुल,
होने वाली है शोरगुल |
फिर चुनाव आया है,
कुछ झूठे वादे लाया है ||
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इस बार बिहार की पारी है,
पर लालू की खोज भी जारी है |
होगा उम्मीदवारों का फुसलाना,
आजकल घर घर दिखते भिखारी हैं ||
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चले जब पैदल, ये मजदूर बिहारी
कोई न समझा इनकी लाचारी |
अब क्यों आये, ये झूठ बोलते तानाशाह ?
करने खरीदे वोटों से पहर गद्दारी ||
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रोजगार की मारामारी है,
सरकार को कुर्सी प्यारी है |
उतारा है सड़कों पे किसानों को,
खैर परवाह किसे, इनकी लाचारी है ||
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वही घिसा-पिटा विकास का मुद्दा,
हिन्दू-मुस्लिम, सुशांत का भी किस्सा |
इन सब पे होगी भाषणबाजी,
और हर कोई लेगा अपना हिस्सा ||
***खैर जो भी फैसला आएगाआम-आदमी फिर धोखा खाएगा