वो सो गयी है तेरे दर्द का प्रचार करके,
वक्त रहते तू भी खुद को सुलाना सिख ले |
क्या हुआ जो आज तू घंटो खाली बैठा,
दिलासा देके दिल को तू बहलाना सीख ले ||
***
तेरी लिखी वो नज्में आज एक बंद किताब है,
पलकों में लिए आँसू, क्यों धुँधले ख्वाब तू ले |
और, न जाने कबसे तेरी आवाज कुछ दबी दबी सी है,
क्यों अब भी बैठा शांत , आज जरा तू चीख़ ले ||
***
हाँ चंद लम्हों तक ये दर्द सीने में होगा,
फिर नाराजगी बन वो सर पे सवार होगा |
गर सह एक दिन तो हर दिन की जुदाई ले,
मैं कहता हूँ यार अब इस दर्द से विदाई ले ||
2 thoughts on “जरा तू चीख़ ले”
Nice one. Very well written.
Thank you Abhisek Nayak! Thank you for your appreciation. Keep reading.