क्यों इतनी तर्क करे मुझसे,
थोड़ा धीरज धर आ बात तो कर |
गर नहीं समझना मुझको तो,
जरा बात को तू निष्णात तो कर ||
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मासूम उदासी छाई है,
तेरे दिल को ये अगुवाई है |
मेरे दिल की तुझे तो इज्जत हो,
सारे जग में जग- हसाई है ||
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बात मोहब्बत की करके,
रिश्तों में होड़ लगाती हो |
गर कमियों का मूलधन हूँ मैं,
तुम सूद सहित चुकाती हो ||
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मैं बात-बेबात बकने वाला,
तुम सब-कुछ चुप सह जाती हो |
बिन बोले तो मैं रह ना सकू,
आखिर तुम कैसे रह पाती हो?
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मन की मैं जटिल बहुत,
तू समझने का प्रयास तो कर |
क्यों इतनी तर्क करे मुझसे,
थोड़ा धीरज धर आ बात तो कर ||